भारत के लोगो का तेल का कारोबार छीनने वाली कंपनियो ने विज्ञापन और प्रलोभन देकर हीरो हीरोइन और खिलाड़ियो के द्वारा आपको जिन कंपनियो के तेल की और आकर्षित किया है असल मे वो जहर है ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि ये बात खुद सरकारी जांच एजेंसियो ने मानी है
आप जो खाने का तेल इस्तेमाल करते हैं वो आपकी सेहत के लिए खतरनाक है” - यह कहना है कि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) का।
सीएसई की यह रिपोर्ट वनस्पति, वेजिटेबिल ऑयल, देशी घी और मक्खन के 30 ब्रांड पर किए गए परीक्षण पर आधारित है। सीएसई का कहना है कि सरकार की ओर से कोई मानक तय नहीं होने की वजह से कम्पनियां इसका फायदा उठा रही हैं।
खाने के तेल पर सीएसई के यह परीक्षण में वनस्पति के सात, वेजिटेबल ऑयल के 21, देशी घी के एक और मक्खन के एक ब्रांड पर किए गए। नतीजे बताते हैं कि अडानी विल्मर के उत्पाद राग में सबसे ज्यादा 23.31 प्रतिशत ‘ट्रांस फैट’ पाया गया जबकि मवाना शुगर्स के उत्पाद ‘पनघट’ में 23.7 फीसदी और एग्रोटेक फूड्स के उत्पाद रथ में 15.9 प्रतिशत ‘ट्रांस फैट’ है।
किसमें कितना फैट?
राग (अडानी विल्मर) 23.31 फीसदी, पनघट (मवाना शुगर्स) 23.7 फीसदी, रथ (एग्रोटेक फूड्स) 15.9 फीसदी।
सीएसई का कहना है कि ट्रांस फैट की मात्रा आपको दिल का मरीज बनाती है। आपके खाने में एक दिन में पांच ग्राम ट्रांस फैट की मात्रा बढ़ने से दिल की बीमारी का खतरा 25 फीसदी बढ़ जाता है। सीएसई के मुताबिक, भारत में ‘ट्रांस फैट’ की मात्रा बताने के लिए इसे उत्पाद के आवरण पर दर्शाने (लेबलिंग) का नियम है। लेकिन रथ ने अपने पैक में इसकी मात्रा 8 से 33 फीसदी और डालडा ने 15 से 55 फीसई बताई है।
सीएसई का कहना है कि सरकार ने अभी तक भारत में इसके लिए कोई मानक ही नहीं बनाया है।
सीएसई के इस खुलासे के बाद स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदॉस भी मान रहे हैं कि ये वाकई बड़ा खतरा है। साल 2006 में स्वास्थ्य मंत्रालय की समिति ने इंडस्ट्री से इस बारे में ब्योरा मांगा था लेकिन आज तक यह जानकारी उसे नहीं मिल सकी है। इससे साफ है कि सरकार इस मुद्दे पर कतई गम्भीर नहीं है।
भारत मे विदेशी कंपनिया और देश के बड़े उघोगपति घराने पैसा कमाने की चाह मे भारत वासियो के स्वास्थ के साथ खिलवाड़ कर रहे है ये बात कह रही है खुद भारत की सरकारी जांच एजेंसी "center of science and environment" सी एस ई " -------------------
दुनिया के लगभग हर देश मे ट्रांस्फेट मिला हुआ तेल ,घी या कोई भी पदार्थ नहीं बेचा जा सकता है डेन्मार्क जैसे देश ने ट्रांस्फेट के लिए मानक तय किए हुए है ! लेकिन भारत जैसे बुद्धिजीवियो और पर्यावरण विदो ,इंजीनियरो और डाक्टरों के देश मे ट्रांस्फेट की मात्रा 35% तक क्यूँ है । भारत के लोगो को क्या ट्रांस्फेट जैसे जहर की आवश्यकता है या फिर भारत वासियो को अपने जीवन से प्यार नहीं है क्योकि इसे खाने के बाद तो केन्सर हो जाना एल्झाइमर हो जाना ,हार्ट अटेक आ जाना मामूली बात है ।
फिर भारत मे ट्रांस्फेट क्यूँ जब अमेरिका मे इस ट्रांस्फेट पर पाबंदी है तो भारत मे क्यूँ नहीं ?
इसका जवाब है भारत की सरकार न लचीलापन और विदेशी कंपनियो का दबाव ...........................
इसलिए भारतवासियों आप से विनम्र निवेदन है की सरकार को छोड़िए अब "शहीद राजीव दीक्षित जैविक संस्थान " के साथ मिल कर आप और हम देश और समाज की रक्षा कर सकते है और गरीब भारत वासियो को रोजगार भी दे सकते है
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