Tuesday 29 January 2013

चीकू खाने के फायदे



चीकू खाने के फायदे--



- चीकू हमारे ह्रदय और रक्त वाहिकाओं के लिए बहुत लाभदायक होता है।




- चीकू कब्ज और दस्त की बिमारी को ठीक करने बहुत सहायक होता है।


- चीकू खाने से gastrointestinal CANCER के होने का खतरा कम होता है।

- चीकू में Beta-Cryptoxanthin होता है जो की फेफड़ो के कैंसर के होने के खतरे को कम करता है।

- चीकू एनिमिया होने से भी रोकता है।

-यह हृदय रोगों और गुर्दे के रोगों को भी होने से रोकता है।

- चीकू खाने से आंतों की शक्ति बढती है और आंतें अधिक मजबूत होती हैं।

- चीकू की छाल बुखार नाशक होती है। इस छाल में टैनिन होता है।

- चीकू के फल में थोड़ी सी मात्रा में संपोटिन नामक तत्व रहता है। चीकू के बीज मृदुरेचक और मूत्रकारक माने जाते हैं। चीकू के बीज में सापोनीन एवं संपोटिनीन नामक कड़वा पदार्थ होता है।

- चीकू शीतल, पित्तनाशक, पौष्टिक, मीठे और रूचिकारक हैं।

- चीकू के पे़ड की छाल से चिकना दूधिया- `रस-चिकल` नामक गोंद निकाला जाता है। उससे चबाने का गोंद च्युंइगम बनता है। यह छोटी-छोटी वस्तुओं को जो़डने के काम आता है। दंत विज्ञान से संबन्धित शल्य क्रिया में `ट्रांसमीशन बेल्ट्स` बनाने में इसका उपयोग होता है। `

- चीकू ज्वर के रोगियों के लिए पथ्यकारक है।

- भोजन के एक घंटे बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ कारक है।

- चीकू के नित्य सेवन से धातुपुष्ट होती है तथा पेशाब में जलन की परेशानी दूर होती है।

Tuesday 22 January 2013

कैंसर को भस्म करता है हीरा



कैंसर को भस्म करता है हीरा---




हीरा है सदा के लिए। यह सुंदरता में चार चांद लगाता है और शरीर भी निरोग रखता है। कैंसर जैसे असाध्य रोग की कारगर दवा है हीरे की भस्म, जिसमें कैंसर की शरीर में अनियंत्रित वृद्धि रोकने की अत्यन्त प्रभावी क्षमता है। इस भस्म से दर्जनभर लोगों को अपनी बीमारी से चमत्कारिक आराम मिला है। इससे चिकित्सकों का हौसला काफी बढ़ गया है।




राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, हंडिया के कायचिकित्सा विभागाध्यक्ष प्रो.जीएस तोमर ने कैंसर को दूर करने के लिए विशेष शोध किया है। इसमें कैंसर रोगियों को हीरक भस्म, गोमूत्र के साथ कुछ दवाओं का सेवन करना होता है। इसमें हीरे की भस्म शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। इससे रोग से अतिशीघ्र निजात मिलता है, क्योंकि हीरे की भस्म से दवाएं कैंसर ग्रस्त अंग जैसे ब्रेन, ब्लड, ब्रोन आदि तक सीधे पहुंचकर कार्य करने लगती हैं। वहीं आयुर्वेदीय 'मोलीकुलरली टारगेटेड थिरेपी' से उस अंग का तेजी से सुधार होता है।

डॉ.तोमर का कहना है कि कैंसर एक ऐसा असाध्य एवं घातक रोग है, जिसके नाम से ही मृत्युवत भय उत्पन्न होता है। कीमोथिरेपी, रेडिएशनथिरेपी तथा शल्य क्रिया में कैंसर को ठीक करने की क्षमता है। रोग के जीर्ण (पुराना) होने पर इसका लाभ नहीं मिल पाता। इससे निराशा एवं भयावहता से ग्रस्त रोगी आयुर्वेद चिकित्सकों की शरण लेते हैं।

तीन-चार सप्ताह में ही दिखने लगता है फायदा---

डॉ.तोमर का दावा है कि हीरे की भस्म को तीन दर्जन से अधिक कैंसर पीड़ितों में प्रयोग किया गया। इसमें दस रोगियों को तीन सप्ताह में 40 प्रतिशत आराम मिल गया, जबकि 15 ऐसे मरीज थे जिनको पांच सप्ताह में 45 प्रतिशत आराम मिला। उन्होंने बताया कि शोध कार्य पूरा होने पर इसकी प्रामाणिकता के लिए आयुष को भेजा जाएगा।

ऐसे बनती है भस्म---

पहले कुल्थी की दाल का काढ़ा बनाया जाता है। इसके बाद हीरे को तपाकर उसे 101 बार उसमें बुझाते हैं। इससे वह भस्म का रूप ले लेता है। फिर शहद में मिलाकर प्रतिदिन 10-20 मिलीग्राम की मात्रा चाटने पर लाभ मिलता है। साथ ही गोमूत्र को उबालकर अर्क बनाते हैं इसे चार चम्मच खाली पेट दिया जाता है।

दवा के साथ करें परहेज-----

कैंसर के रोगियों को दवा के साथ कुछ पहरेज भी करना होता है। बिना उसके दवा का लाभ नहीं मिल पाता।

-प्रदूषित पानी का सेवन न करें।

-धूम्रपान व तंबाकू का सेवन न करें।

-शराब के सेवन से रहें दूर।

-लाल मांस का सेवन न करें।

-वसा युक्त खाद्य पदार्थ से बचें।

-बासी व अधिक समय से कटे फल का सेवन न करें।

नीम एक चमत्कारी वृक्ष




नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है।

• नीम के पेड़ पूरे भारत में फैले हैं और हमारे जीवन से जुड़े हुए हैं। नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है जो कि भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। भारत में इसके औषधीय गुणों की जानकारी हज़ारों सालों से रही है।

• भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं, वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। लेकिन, अब अन्य देश भी इसके गुणों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। नीम हमारे लिए अति विशिष्ट व पूजनीय वृक्ष है। नीम को संस्कृत में निम्ब, वनस्पति विज्ञान में 'आज़ादिरेक्ता- इण्डिका (Azadirecta-indica) अथवा Melia azadirachta कहते है।
गुण
यह वृक्ष अपने औषधि गुण के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। नीम स्वाभाव से कड़वा जरुर होता है, परन्तु इसके औषधीय गुण बड़े ही मीठे होते है। तभी तो नीम के बारे में कहा जाता है की एक नीम और सौ हकीम दोनों बराबर है। इसमें कई तरह के कड़वे परन्तु स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ होते है, जिनमे मार्गोसिं, निम्बिडीन, निम्बेस्टेरोल प्रमुख है। नीम के सर्वरोगहारी गुणों से भरा पड़ा है। यह हर्बल ओरगेनिक पेस्टिसाइड साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम, दातुन, मधुमेह नाशक चूर्ण, कोस्मेटिक आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। नीम की छाल में ऐसे गुण होते हैं, जो दाँतों और मसूढ़ों में लगने वाले तरह-तरह के बैक्टीरिया को पनपने नहीं देते हैं, जिससे दाँत स्वस्थ व मज़बूत रहते हैं।
चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसे ग्रामीण औषधालय का नाम भी दिया गया है। यह पेड़ बीमारियों वगैरह से आज़ाद होता है और उस पर कोई कीड़ा-मकौड़ा नहीं लगता, इसलिए नीम को आज़ाद पेड़ कहा जाता है। [1]भारत में नीम का पेड़ ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग रहा है। लोग इसकी छाया में बैठने का सुख तो उठाते ही हैं, साथ ही इसके पत्तों, निबौलियों, डंडियों और छाल को विभिन्न बीमारियाँ दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं। ग्रन्थ में नीम के गुण के बारे में चर्चा इस तरह है :-
निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत।
अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥
अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।[2]
घरेलू उपयोग
नीम के वृक्ष की ठंण्डी छाया गर्मी से राहत देती है तो पत्ते फल-फूल, छाल का उपयोग घरेलू रोगों में किया जाता है, नीम के औषधीय गुणों को घरेलू नुस्खों में उपयोग कर स्वस्थ व निरोगी बना जा सकता है। इसका स्वाद तो कड़वा होता है, लेकिन इसके फ़ायदे तो अनेक और बहुत प्रभावशाली हैं और उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :--

• नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।
• नीम के तेल का दिया जलाने से मच्छर भाग जाते है और डेंगू , मलेरिया जैसे रोगों से बचाव होता है
• नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है।
• इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है।
• नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से दाँतों का दर्द जाता रहता है।
• नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।
• नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं, और ये ख़ासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
• चेचक होने पर रोगी को नीम की पत्तियों बिछाकर उस पर लिटाएं।
• नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है।
• नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।
• नीम के फल (छोटा सा) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
• नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
• नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।
• नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।
• नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।
• नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।
• नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।
• नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।
• गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।
• बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।
• नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।
• गठिया की सूजन पर नीम के तेल की मालिश करें।
• नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।
• नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।
• निबोरी नीम का फल होता है, इससे तेल निकला जाता है। आग से जले घाव में इसका तेल लगाने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है।
• नीम का फूल तथा निबोरियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते।
• नीम की जड़ को पानी में उबालकर पीने से बुखार दूर हो जाता है।
• छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।
• विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो मधुमेह से लेकर एड्स, कैंसर और न जाने किस-किस तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है।
नीम के उपयोग से लाखों लोगों को रोजगार मिलता है, आप सभी से निवेदन है कि आप नीम जैसी औषधि का अपने घर में जरूर प्रयोग करे और देश के विकास में सहयोग दे और स्वस्थ भारत और प्रगतिशील भारत का निर्माण करे और अपने धन को विदेशी कम्पनियों के पास जाने से रोके

Friday 18 January 2013

गाय के घी का महत्त्व



वन्दे गौ मातरम्


.


गाय के घी का महत्त्व -


आज खाने में घी ना लेना एक फेशन बन गया है . बच्चे के जन्म के बाद डॉक्टर्स भी घी खाने से मना करते है . दिल के मरीजों को भी घी से दूर रहने की सलाह दी जाती है .ये गौमाता के खिलाफ एक खतरनाक साज़िश है . रोजाना कम से कम २ चम्


मच गाय का घी तो खाना ही चाहिए .



- यह वात और पित्त दोषों को शांत करता है .
- चरक संहिता में कहा गया है की जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना
ही भारी भोजन क्यों ना खाया जाए , ये बुझती नहीं .
- बच्चे के जन्म के बाद वात बढ़ जाता है जो घी के सेवन से निकल जाता है . अगर ये नहीं निकला तो मोटापा बढ़ जाता है .
- हार्ट की नालियों में जब ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट का काम करता है .
- कब्ज को हटाने के लिए भी घी मददगार है .
- गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता है तो घी उसे शांत करता है .
- घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता है .
- दाल में घी डाल कर खाने से गेस नहीं बनती .
- घी खाने से मोटापा कम होता है .
- घी एंटी ओक्सिदेंट्स की मदद करता है जो फ्री रेडिकल्स को नुक्सान पहुंचाने से रोकता है .
- वनस्पति घी कभी न खाए . ये पित्त बढाता है और शरीर में जम के बैठता है .
- घी को कभी भी मलाई गर्म कर के ना बनाए . इसे दही जमा कर मथने से इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है . फिर इसको गर्म करने से घी मिलता है . इसे बनाते वक़्त अगर भगवान का भजन और स्मरण किया जाए तो इसकी खुशबु और स्वाद ही अनोखा होगा .

Tuesday 15 January 2013

केसर

केसर --

- दुनिया भर के मसालों में यह सबसे महंगा है और एक से डेढ़ लाख रूपए किलो बिकता है। विश्व में मुख्य रूप से कश्मीर घाटी और ईरान में इसकी खेती होती है। इसके अलावा स्पेन में भी इसे उगाया जाता है। मगर गुणवत्ता में अव्वल नंबर पर हिन्दुस्तानी ज़ाफ़रान ही माना जाता है।

- असली केसर पानी में पूरी तरह घुल जाती है।केसर को पानी में भिगोकर कपडे पर रगडने से पीला केसरिया रंग निकले तो ये असली है।यदि पहले लाल रंग फिर बाद में पीला रंग निकले तो ये नकली है।

- यह उष्णवीर्य, उत्तेजक, पाचक, वात-कफ नाशक मानी गयी है।

- यह उत्तेजक, वाजीकारक, यौनशक्ति वर्धक, त्रिदोष नाशक, वातशूल शमन करने वाली है।

- यह मासिक धर्म ठीक करने वाली, त्वचा को निखारने वाली, रक्तशोधक, प्रदर और निम्न रक्तचाप को ठीक करने वाली भी है। कफ का नाश करने, मन को प्रसन्न रखने, मस्तिष्क को बल देने वाली, हृदय और रक्त के लिए हितकारी भी है।

- इसका उपयोग यूनानी नुस्खों में भी किया जाता है।

- केसर बुखार की शुरुवाती अवस्था में बुखार बाहर निकालता है ; पर तेज़ बुखार में , पित्त की अधिकता में इसका उपयोग सावधानी से करना चाहिए।

- गुलाब जल में केसर घिस कर आँखों में डालने से आँखों की रौशनी बढती है।

- महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द को दूर करने के लिए 2-2 रत्ती केसर दूध में घोलकर दिन में तीन बार देना फायदेमंद होता है।

- केसर और अकरकरा की गोलियाँ बनाकर सेवन करने से मासिक धर्म नियमित होता है।

- बच्चों को सर्दी, जुकाम, बुखार होने पर केसर की एक पंखुड़ी पानी में घोंटकर इसका लेप छाती, पीठ और गले पर लगाने से आराम होता है।

- चंदन को केसर के साथ घिसकर इसका लेप माथे पर लगाने से सिर, आंख और मस्तिष्क को शीतलता, शांति और ऊर्जा मिलती है। इससे नाक से रक्त का गिरना बंद हो जाता है और सिर दर्द जल्द दूर होता है।

- बच्चे को सर्दी हो तो केसर की 1-2 पंखुड़ी 2-4 बूंद दूध के साथ अच्छी तरह घोंटें ताकि केसर दूध में घुल जाए। इसे एक चम्मच दूध में मिलाकर बच्चे को सुबह-शाम पिलाएं। इससे उसे काफी लाभ होगा। - माथे, नाक, छाती व पीठ पर लगाने के लिए केसर, जायफल व लौंग का लेप पानी में बनाएं और रात को सोते समय इसका लेप करें।

- केसर दूध पौरुष व कांतिवर्धक होता है।

- यह मूत्राशय, तिल्ली, यकृत (लीवर), मस्तिष्क व नेत्रों की तकलीफों में भी लाभकारी होती है। प्रदाह को दूर करने का गुण भी इसमें पाया जाता है।

- जाड़े में गर्म व गर्मी में ठंडे दूध के साथ केसर के उपयोग की सलाह दी जाती है।

- चोट लगने पर या त्वचा के झुलस जाने पर केसर का लेप लगाने से आराम मिलता है।

- पेट से जुड़ी अनेक परेशानियां, जैसे अपच, दर्द, वायु विकार आदि में केसर काफी उपयोगी साबित होती है।

- दूध में डालकर पिने से पेट के कीड़े समाप्त होते है।

- केसर को घी के साथ खाने से पुरानी कब्ज दूर होती है।

- 120 मिलीग्राम केसर को 50 मिली पानी में मिटटी के बर्तन में रात भर भिगोकर रखे। सुबह 20-25 किशमिश खाकर इस पानी को पिए।15 दिनों तक सेवन करने से ह्रदय की कमजोरी दूर होती है।

- केसर ठंड में उपयोग की जाने वाली एक बेहतरीन दवा है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार ठंड में रोजाना थोड़ी मात्रा में केसर लेने से शरीर में कई प्रकार के रोग नहीं होते हैं।इसका स्वभाव गर्म होता है। इसलिए औषधि के रूप में 250 मिलिग्राम व खाद्य के रूप में 100 मिलिग्राम से अधिक मात्रा में इसके सेवन की सलाह नहीं दी जाती। 

- कई अध्ययनों से पता चला है कि गर्भवती महिला को प्रतिदिन दूध में केसर घोलकर पिलाने से जन्म लेने वाले शिशु का रंग गोरा होता है। इतना ही नहीं, यदि मां गर्भावस्था के दौरान केसर का सेवन करती है तो इससे उसका होने वाला बच्चा तंदुरुस्त होता है और कई तरह की बीमारियों से बचा रहता है। कई बार नवजात शिशु को सर्दी जकड़ लेती है। इससे कभी-कभी उसकी नाक भी बंद हो जाती है जिससे बच्चा मुंह से सांस लेने लगता है और हकलाने लगता है। ऐसी स्थिति में मां के दूध में केसर मिलाकर बच्चे के सिर और नाक पर मलें। इससे बच्चे को काफी आराम मिलता है और उसकी बेचैनी कम हो जाती है।

- अनेक लोग को शीत काल में कोल्ड-एलर्जी हो जाती है। अधिकतर सर्दी की शुरुआत व अंत के समय या तेज शीत लहर चलने पर नाक से पानी टपकना "नजला जुखाम" से पीड़ित हो जाते है| सर्दी के शुरू होने से पहले यानी दिवाली के बाद एक ग्राम केसर लाकर उसे खरल में बारीक पीस ले, फिर उस पीसी हुई केशर और २००-२५० ग्राम गुलाब जल को काँच की शीशी में डालकर रख दे। रोजाना सोते समय तीन वर्ष से अधिक के बच्चो को आधी चम्मच गिलास दुग्ध में; दस वर्ष से अधिक आयु वाले एक चम्मच गिलास दुग्ध में ;वृद्धो को दो चम्मच गिलास दुग्ध में प्रति रात्रि सोने से पहले गुनगुने दुग्ध में मिलाकर पीये। केसर मिश्रित गुलाब जल को चम्मच में लेने से पहले शीशी को थोड़ा हिला ले।कोल्ड एलर्जी से होने वाली खांसी-जुकाम-नजला-नाक टपकना पुरी सर्दी के लिए ख़त्म..... (नोट:-तीन वर्ष से कम आयु के बच्चो के लिए यह नुस्खा वर्जित है)