Tuesday 21 May 2013

ठंडाई





ठंडाई-
ग्रीष्म ऋतु में जब शरीर में अतिरिक्त उष्णता बढ़ जाने से कुछ व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं, तब दिन में एक बार ठंडाई का सेवन करने से बड़ी राहत मिलती है। शरीर में तरोताजगी एवं चुस्ती-फुर्ती बनी रहती है। शरीर को पोषण भी मिलता है और गर्मी का मुकाबला करने की क्षमता और शक्ति भी मिलती है।

यूँ तो ठंडाई का मसाला बाजार में तैयार मिलता है, जिसे लाकर घोंट-छानकर सेवन किया जा सकता है पर घर में बना मसाला ज़्यादा पौष्टिक और स्वादिष्ट और सस्ता होगा.
जो व्यक्ति सभी द्रव्यों को अलग-अलग खरीदकर लाना चाहे और सब द्रव्यों को उचित मात्रा में मिलाकर घर पर ही ठंडाई का मिश्रण तैयार करना चाहे, वो इस नुस्खे का उपयोग कर सकते हैं। ऐसा करना गुणवत्ता, शुद्धता एवं प्रत्येक द्रव्य को उचित मात्रा में मिश्रण करने की दृष्टि से अच्छा ही होगा।
खरबूज , तरबूज , खीरा ,पेठा और बादाम के बीज ये पांच मगज है जो दिमाग को तरावट देते है और दिमाग को मज़बूत बनाते है.

सामग्री : धनिया, खसखस के दाने, पांचो मगज , गुलाब के फूल, काहू के बीज, खस कुलफे के बीज, सौंफ, काली मिर्च, सफेद मिर्च और कासनी, सभी 11 द्रव्य 50-50 ग्राम। छोटी इलायची, सफेद चन्दन का बूरा और कमल गट्टे की गिरी, तीनों 25-25 ग्राम। इन सबको पीस लें और बोतल में भर लें।

एक बात का खयाल रखें कि कमल गट्टे की गिरि और चन्दन का बूरा खूब सूखा हुआ होना चाहिए। कमल गट्टे के पत्ते और छिलके हटाकर सिर्फ गिरि ही लेना है। इस मिश्रण की 10 ग्राम मात्रा एक व्यक्ति के लिए काफी होती है। जितने व्यक्तियों के लिए ठंडाई घोंटना हो, प्रति व्यक्ति 10 ग्राम के हिसाब से ले लेना चाहिए।


बनाने के चार-पाँच घंटे पहले प्रति व्यक्ति एक छोटे चम्मच के हिसाब से भिगो दें। अधिक पौष्टिक बनाने के लिए भीगी, कतरी हुई बादाम भी मिला लें।केसर मिलाकर इसे और भी स्वादिष्ट बनाइये. इसे ठंडे पानी या दूध की सहायता से छानें। चीनी या मिश्री मिलाकर ठंडी-ठंडी पीएँ।


बाल सफेद हो रहे हों या गिर रहे हों ये देसी नुस्खें कर देंगे पक्का इलाज





बाल सफेद हो रहे हों या गिर रहे हों ये देसी नुस्खें कर देंगे पक्का इलाज
डाँग- गुजरात में आदिवासी नीम के बीजों के तेल को रात में बालों में लगाते है और सुबह इसे धो लिया जाता है। सप्ताह में इस तेल से बालों पर कम से कम 2 बाल मालिश करने की भी सलाह दी जाती है। पातालकोट (मध्यप्रदेश) के हर्बल जानकार नारियल के तेल में नीम के बीजों को उबालते हैं और इस तेल से सप्ताह में दो बार मालिश करने की सलाह देते हैं।
कुसुम के बीजों का चूर्ण और बबूल की छाल का चूर्ण, दोनों समान मात्रा में लेकर तवे पर भून लिया जाता है। जलने की वजह से राख जैसा मिश्रण तैयार हो जाता है, इस मिश्रण को नारियल या मोगरा के तेल के साथ मिलाकार सिर पर मालिश किया जाए तो बालों की वृद्दि तेजी से होती है और यही फार्मुला गंजापन भी रोकने में मदद करता है।
डाँग- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार इंद्रायण नामक पौधे की जडों को गौ-मूत्र में कुचलते हैं और सिर पर लगाते हैं। इनके अनुसार प्रतिदिन ऐसा करने से गंजापन नहीं आता और बालों की जडों को मजबूती भी मिलती है।

बालों की बेहतर सेहत और घने बनाने के लिए शंखपुष्पी के ताजे पौधों को सुखा लिया जाए और चूर्ण तैयार किया जाए। इस चूर्ण को नारियल तेल में डालकर मध्यम आँच पर 20-25 मिनिट तक गर्म किया जाए। जब यह ठंडा हो जाए तो इसे छानकर बालों पर लगाया जाए, यह बालों की जडों को मजबूती प्रदान करता है और इन्हें घना भी करता है।
आँवले के फलों का चूर्ण लिया जाए और इसमें एक टमाटर कुचल कर मिला जाए, इन दोनों को अच्छी तरह से मिलाकर सिर पर लगाकर 20 मिनिट तक मालिश किया जाए तो बालों से डेंड्रफ दूर हो जाते हैं। ऐसा सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए।
बालों पर नारियल का ताजा पानी लगाकर हल्की हल्की मालिश करने से बालों का रूखापन दूर होता है और इनके झडने का सिलसिला कम हो जाता है। कई इलाकों में ताजे हरे नारियल के फल से निकाली गई मलाई को भी बालों पर हल्का हल्का रगडकर मालिश करने की सलाह आदिवासी देते हैं। माना जाता है कि इन दोनो युक्तियों को अपनाने से बालों की सेहत बेहतर हो जाती है।
पातालकोट में आदिवासी अनंतमूल की चाय तैयार करते हैं, माना जाता है कि बालों की बेहतर सेहत के लिए यह चाय बडी कारगर है। इस चाय को तैयार करने के लिए अनंतमूल की जडों के साथ कुछ मात्रा में सेमल की छाल भी मिला दी जाती है और इसे पानी में डालकर खौलाया जाता है। ठंडा होने पर इसे छान लिया जाता है और पी लिया जाता है। माना जाता है कि यह फार्मुला बालों की सेहत बेहतर करता है और साथ ही बालों का असमय पकना भी रोकता है।
डाँग- गुजरात में आदिवासी गुडहल के लाल फूलों को नारियल तेल में डालकर गर्म करते हैं और बालों पर इस तेल से मालिश की जाती है। कहा जाता है कि नहाते वक्त बालों पर इस तेल को लगाया जाए और नहाने के बाद बालों को आहिस्ता आहिस्ता सूती तौलिये से सुखा लिया जाए, और नहाने के बाद भी इस तेल को बालों पर लगाया जाए, काफी तेजी से बालों की सेहत में सुधार आता है।
गुडहल के ताजे लाल फूलों को हथेली में कुचल लिया जाए और इस रस को नहाने के दौरान बालों पर हल्का हल्का रगडा जाए, गुडहल एक बेहतरीन कंडीशनर की तरह कार्य करता है।

मुनगा/ सहजन की पत्तियों को कुचलकर नहाने से पहले बालों में लगाया जाए तो माना जाता है कि बालों से डेंड्रफ दूर करने में काफी मदद होती है। मध्यप्रदेश के कई इलाकों में सहजन की पत्तियों का चूर्ण तैयार कर तेल में मिलाकर रात सोने से पहले सिर में लगाने की बात की जाती है। माना जाता है कि यह बालों में ताकत प्रदान करता है और अक्सर असमय पकने की प्रक्रिया को भी रोक देता है।

By- Poojya Acharya Bal Krishan Ji Maharaj

Saturday 4 May 2013

लहसुन







लहसुन में 6 प्रकार के रसों में से 5 रस पाये जाते हैं, केवल अम्ल नामक रस नहीं पाया जाता है।

निम्न रस - मधुर - बीजों में, लवण - नाल के अग्रभाग में, कटु - कन्दों में, तिक्त - पत्तों में, कषाय - नाल में। ""रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण:
पाचर: सर:।"" अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य - वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म”ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।

""भग्नसन्धानकृत्"" - टूटी हुई हçड्डयों को जो़डने वाला, कुष्ठ के लिए हितकर, शरीर में बल, वर्ण कारक, मेधा और नेत्र शक्ति वर्धक होता है।
लहसुन सेवन योग्य व्यक्ति के लिए पथ्य - अपथ्य: पथ्य : मद्य, माँस तथा अम्ल रस युक्त भक्ष्य पदार्थ हितकर होते हैं - ""मद्यंमांसं तथाडमल्य्य हितं लसुनसेविनाम्""।

अहितकर : व्यायाम, धूप का सेवन, क्रोध करना, अधिक जल पीना, दूध एवं गु़ड का सेवन निषेध माना गया है।

रासायनिक संगठन : इसके केन्द्रों में एक बादामी रंग का उ़डनशील तेल पाया जाता है, जिसमें प्रधान रूप से Allyl disulphible and Allyl propyldisulphide और अल्प मात्रा में Polysulphides पाये जाते हैं। इन सभी की क्रिया Antibacterial होती है तथा ये एक तीव्र प्रतिजैविक Antibiotics का भी काम करते हैं।

श्वसन संस्थान पर लहसनु के उपयोग:
1. लहसुन के रस की 1 से 2 चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार यक्ष्मा दण्डाणुओं (T.B.) से उत्पन्न सभी विकृत्तियों जैसे - फुफ्फुस विकार, स्वर यन्त्रशोथ में लाभदायक होती है। इससे शोध कम होकर लाभ मिलता है।
2. स्वर यन्त्रशोथ में इसका टिंक्चर 1/2 - 1 ड्राप दिन में 2-3 बार देने पर लाभ होता है।
3. पुराने कफ विकार जैसे - कास, श्वास, स्वरभङग्, (Bronchitis) (Bronchiectasis) एवं श्वासकृच्छता में इसका अवलेह बनाकर उपयोग करने से लाभ होता है।
4. चूंकि लहसुन में जो उ़डनशील तैलीय पदार्थ पाया जाता है, उसका उत्सर्ग त्वचा, फुफ्फुस एवं वृक्क द्वारा होता है, इसी कारण ज्वर में उपयोगी तथा जब इसका उत्सर्ग फुफ्फुसों (श्वास मार्ग) के द्वारा होता है, तो कफ ढ़ीला होता है तथा उसके जीवाणुओं को नाश होकर कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।
5.(Gangerene of lungs) तथा खण्डीय (Lobar pneumonia) में इसके टिंक्चर 2-3 बूंद से आरंभ कर धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाकर 20 तक ले जाने से लाभ होता है।
6. खण्डीय फुफ्फुस पाक में इसके टिंक्चर की 30 बूंदें हर 4 घण्टे के उपरान्त जल के साथ देने से 48 घण्टे के अन्दर ही लाभ मालूम होता है तथा 5-6 दिन में ज्वर दूर हो जाता है।
7. बच्चों में कूकर खांसी, इसकी कली के रस की 1 चम्मच में सैंधव नमक डालकर देने से दूर होती है। 8. अधिक दिनों तक लगातार चलने वाली खाँसी में इसकी 3-4 कलियों (छोटे टुक़डों) को अग्नि में भूनकर, नमक लगाकर खाने से में लाभ मिलता है।
9. लहसुन की 5-7 कलियों को तेल में भूनें, जब कलियाँ काली हो जाएं, तब तेल को अग्नि पर से उतार कर जिन बच्चों या वृद्ध लोगों को जिनके Pneumoia (निमोनिया) या छाती में कफ जमा हो गया है, उनमें छाती पर लेप करके ऊपर से सेंक करने पर कफ ढीला होकर खाँसी के द्वारा बाहर निकल जाता है।

तंत्रिका संस्थान के रोगों में उपयोग:
1. (Histeria) रोग में दौरा आने पर जब रोगी बेहोश हो जाए, तब इसके रस की 1-2 बूंद नाक में डालें या सुंघाने से रोगी का संज्ञानाश होकर होश आ जाता है।
2. अपस्मार (मिर्गी) रोग में लहसुन की कलियों के चूर्ण की 1 चम्मच मात्रा को सायँकाल में गर्म पानी में भिगोकर भोजन से पूर्व और पश्चात् उपयोग कराने से लाभ होता है। यही प्रक्रिया दिन में 2 बार करनी चाहिए।
3. लहसुन वात रोग नाशक होता है अत: सभी वात विकारों साईटिका (Sciatica), कटिग्रह एवं मन्याग्रह (Lumber & Cirvical spondalitis) और सभी लकवे के रोगियों में लहसुन की 7-9 कलियाँ एवं वायविडगं 3 ग्राम मात्रा को 1 गिलास दूध में, 1 गिलास पानी छानकर पिलाने से सत्वर लाभ मिलता है।
4. सभी वात विकार, कमर दर्द, गर्दन दर्द, लकवा इत्यादि अवस्थाओं में सरसों या तिल्ली के 50 ग्राम तेल में लहसुन 5 ग्राम, अजवाइन 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम और लौंग 5-7 नग डालकर तब तक उबालें जब ये सभी काले हो जाएं। इन्हें छानकर तेल को काँच के मर्तबान में भर लें व दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से पी़डा दूर होती है।
5. जीर्णआमवात, सन्धिशोथ में इसे पीसकर लेप करने से शोथ और पी़डा का नाश होता है।
6. बच्चों के वात विकारों में ऊपर निर्दिष्ट तेल की मालिश विशेष लाभदायक होती है।

पाचन संस्थान में उपयोग:
1. अजीर्ण की अवस्था और जिन्हें भूख नहीं लगती है, उन्हें लहसुन कल्प का उपयोग करवाया जाता है। आरंभ में 2-3 कलियाँ खिलाएं, फिर प्रतिदिन 2-2 कलियाँ बढ़ाते हुए शरीर के शक्तिबल के अनुसार 15 कलियों तक ले जाएं। फिर पुन: घटाते हुए 2-3 कलियों तक लाकर बंद कर कर दें। इस कल्प का उपयोग करने से भूख खुलकर लगती है। आंतों में (Atonic dyspepsia) में शिथिलता दूर होकर पाचक रसों का ठीक से स्राव होकर आंतों की पुर: सरण गति बढ़ती है और रोगी का भोजन पचने लगता है।
2. आंतों के कृमि (Round Worms) में इसके रस की 20-30 बूंदें दूध के साथ देने से कृमियों की वृद्धि रूक जाती है तथा मल के साथ निकलने लगते हैं।
3. वातगुल्म, पेट के अफारे, (Dwodenal ulcer) में इसे पीसकर, कर घी के साथ खिलाने से लाभ होता है।

ज्वर (Fever) रोग में उपयोग:
1. विषम ज्वर (मलेरिया) में इसे (3-5 कलियों को) पीस कर या शहद में मिलाकर कुछ मात्रा में तेल या घी साथ सुबह खाली पेट देने से प्लीहा एवं यकृत वृद्धि में लाभ मिलता है।
2. आंत्रिक ज्वर/मियादी बुखार/मोतीझरा (Typhoid) तथा तन्द्राभज्वर (Tuphues) में इसके टिंक्चर की 8-10 बूंदे शर्बत के साथ 4-6 घण्टे के अन्तराल पर देने से लाभ मिलता है। यदि रोग की प्रारंभिक अवस्था में दे दिया जाये तो ज्वर बढ़ ही नहीं पाता है।
3. इसके टिंक्चर की 5-7 बूंदें शर्बत के साथ (Intestinal antiseptic) औषध का काम करती है। ह्वदय रोग में: 1. ह्वदय रोग की अचूक दवा है।
2. लहसुन में लिपिड (Lipid) को कम करने की क्षमता या Antilipidic प्रभाव होने के कारण कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइडस की मात्रा को कम करता है।
3. लहसुन की 3-4 कलियों का प्रतिदिन सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ लेवल कम होकर ह्वदयघात (Heartattack) की संभावनाओं को कम करता है।


1. लहसुन की तीक्ष्णता को कम करने के लिए इनकी कलियों को शाम को छाछ या दही के पानी में भिगो लें तथा सुबह सेवन करने से इसकी उग्र गन्ध एवं तीक्ष्णता दोनों नष्ट हो जाती हैं।
2. लहसुन की 5 ग्राम मात्रा तथा अर्जुन छाल 3 ग्राम मात्रा को दूध में उबाल कर (क्षीरपाक बनाकर) लेने से मायोकार्डियल इन्फेक्शन ((M.I.) ) तथा उच्चा कॉलेस्ट्रॉल (Hight Lipid Profile) दोनों से बचा जा सकता है।
3. ह्वदय रोग के कारण उदर में गैस भरना, शरीर में सूजन आने पर, लहसुन की कलियों का नियमित सेवन करने से मूत्र की प्रवृत्ति बढ़कर सूजन दूर होता है तथा वायु निकल कर ह्वदय पर दबाव भी कम होता है।
4. (Diptheria) नामक गले के उग्र विकार में इसकी 1-1 कली को चूसने पर विकृत कला दूर होकर रोग में आराम मिलता है, बच्चों को इसके रस (आधा चम्मच) में शहद या शर्बत के साथ देना चाहिए।
5. पशुओं में होने वाले Anthrax रोग में इसे 10-15 ग्राम मात्रा में आभ्यान्तर प्रयोग तथा गले में लेप के रूप में प्रयोग करते हैं।

Note : लहसुन के कारण होने वाले उपद्रवों में हानिनिवारक औषध के रूप में मातीरा, धनियाँ एवं बादाम के तेल में उपयोग में लाते हैं।
Note : गर्भवती स्त्रयों तथा पित्त प्रकृत्ति वाले पुरूषों को लहसुन का अति सेवन निषेध माना गया है।