Sunday 28 April 2013

शतावरी घृत (रसायन)





शतावरी घृत (रसायन)


बार-बार कमोत्तेजित होने और यौन कार्य में अति करने से शुक्राशय शिथिल हो जाता है और शुक्र को रोककर रखने में समर्थ नहीं रहता।
गलत आहार-विहार के कारण कुपित हुआ पित्त अपनी बढ़ी हुई उष्णता से शुक्र को पतला तथा उष्ण कर देता है। इससे शीघ्रपतन और बार-बार पेशाब आने की शिकायत पैदा हो जाती है।
सिर और पूरे शरीर में उष्णता एवं दाह का अनुभव होता है। स्त्रियों को रक्त प्रदर, अधिक ऋतुस्राव, योनि मार्ग में शोथ एवं दाह होना, खुजली होना, सहवास के समय कष्ट होना आदि होता है।
शरीर एवं शुक्र धातु को पुष्ट एवं सबल बनाने के लिए शतावरी घृत (रसायन) का सेवन करना गुणकारी रहता है।
घटक द्रव्य : शतावरी का रस 400 मिली, दूध 400 मिली तथा घी (गाय के दूध का घी ले सकें तो अति उत्तम) 200 ग्राम। जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीर काकोली, मुनक्का, मुलहठी, मुद्गपर्णी, माषपर्णी, विदारीकन्द और रक्त चंदन सब औषधियों को समान भाग (किसी भी मात्रा में) लेकर कूट-पीसकर पानी के साथ कल्क (पिठ्ठी) बना लें। यह पिठ्ठी 50 ग्राम। जल 400 मिली। शकर एवं शहद 25-25 ग्राम।
निर्माण विधि : शतावरी यदि हरी व ताजी न मिले तो मिट्टी के बरतन में 800 मिली जल डालकर शतावरी का 400 ग्राम चूर्ण डाल दें और 24 घंटे तक ढँककर रखें। बाद में खूब मसलकर कपड़े से छान लें। यह शतावरी का रस है। इसे 400 मिली ताजे रस की जगह प्रयोग करें। शकर और शहद को अलग रखकर 12 औषधियों को, दूध और घी सहित पानी में डालकर आग पर पकाएँ। जब सिर्फ घी बचे, पानी व दूध जल जाए, तब उतारकर ठण्डा कर लें और शकर व शहद मिलाकर एक जान कर लें।
मात्रा और सेवन विधि : 1 या 2 चम्मच, दूध के साथ सुबह-शाम लें।
लाभ : यह शतावरी घृत स्त्री-पुरुषों के लिए समान रूप से हितकारी एवं उपयोगी है। उत्तम पौष्टिक, बलवीर्यवर्द्धक एवं शीतवीर्य गुणयुक्त होने से पुरुषों के लिए शुक्र को गाढ़ा, शीतल एवं पुष्टि करने वाला होने से वाजीकारक और स्तम्भनशक्ति देने वाला है। पित्तशामक और शरीर में अतिरिक्त रूप से बढ़ी हुई गर्मी को सामान्य करने वाला है। स्त्रियों के लिए योनिशूल, योनिशोथ और योनि विकार नाशक, रक्तप्रदर एवंअति ऋतुस्राव को सामान्य करने वाला तथा शीतलता प्रदान करने वाला है।
* अतिरिक्त उष्णता, पित्तजन्य दाह एवं तीक्ष्णता के कारण स्त्री का योनि मार्ग दूषित हो जाता है, जिससे पुरुष के शुक्राणु गर्भाशय तक पहुंचने से पहले ही मरजाते हैं। इसी तरह पुरुष के शुक्र में शुक्राणु नष्टहोते रहते हैं। शतावरी घृत के सेवन से स्त्री-पुरुष दोनों को लाभ होता है और स्त्री गर्भ धारण करने में सक्षम हो जाती है।
परहेज : दिन में सोना, मांसाहार, अण्डा, तम्बाकू धूम्रपान, भारी भोजन, अधिक श्रम या व्यायाम आदि अपथ्य है। मधुर रस, स्गिधता और पोष्टिक पदार्थों का सेवन पथ्य है।

Monday 15 April 2013

*** तुलसी एक 'दिव्य पौधा' ***




*** तुलसी एक 'दिव्य पौधा' ***

भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का बहुत महत्व है और इस पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऎसा माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा नहीं होता उस घर में भगवान भी रहना पसंद नहीं करते। माना जाता है कि घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगा कलह और दरिद्रता दूर करता है। इसे घर के आंगन में स्थापित कर सारा परिवार सुबह-सवेरे इसकी पूजा-अर्चना करता है। यह मन और तन दोनों को स्वच्छ करती है। इसके गुणों के कारण इसे पूजनीय मानकर उसे देवी का दर्जा दिया जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्था का प्रतीक भर नहीं है। इस पौधे में पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तुलसी को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

* लिवर (यकृत) संबंधी समस्या: तुलसी की 10-12 पत्तियों को गर्म पानी से धोकर रोज सुबह खाएं। लिवर की समस्याओं में यह बहुत फायदेमंद है।
* पेटदर्द होना: एक चम्मच तुलसी की पिसी हुई पत्तियों को पानी के साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें। पेटदर्द होने पर इस लेप को नाभि और पेट के आस-पास लगाने से आराम मिलता है।
* पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेट में गैस बनना आदि होने पर एक ग्लास पानी में 10-15 तुलसी की पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।
* बुखार आने पर : दो कप पानी में एक चम्मच तुलसी की पत्तियों का पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिन में दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वाद के लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।
* खांसी-जुकाम : करीब सभी कफ सीरप को बनाने में तुलसी का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को थोडी- थोडी देर पर अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। चाय की पत्तियों को उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है। इस पानी को आप गरारा करने के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
* सर्दी से बचाव : बारिश या ठंड के मौसम में सर्दी से बचाव के लिए तुलसी की लगभग 10-12 पत्तियों को एक कप दूध में उबालकर पीएं। सर्दी की दवा के साथ-साथ यह एक न्यूट्रिटिव ड्रिंक के रूप में भी काम करता है। सर्दी जुकाम होने पर तुलसी की पत्तियों को चाय में उबालकर पीने से राहत मिलती है। तुलसी का अर्क तेज बुखार को कम करने में भी कारगर साबित होता है।
* श्वास की समस्या : श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है। नमक, लौंग और तुलसी के पत्तों से बनाया गया काढ़ा इंफ्लुएंजा (एक तरह का बुखार) में फौरन राहत देता है।
* गुर्दे की पथरी : तुलसी गुर्दे को मजबूत बनाती है। यदि किसी के गुर्दे में पथरी हो गई हो तो उसे शहद में मिलाकर तुलसी के अर्क का नियमित सेवन करना चाहिए। छह महीने में फर्क दिखेगा।
* हृदय रोग : तुलसी खून में कोलेस्ट्राल के स्तर को घटाती है। ऐसे में हृदय रोगियों के लिए यह खासी कारगर साबित होती है।
* तनाव : तुलसी की पत्तियों में तनाव रोधीगुण भी पाए जाते हैं। तनाव को खुद से दूर रखने के लिए कोई भी व्यक्ति तुलसी के 12 पत्तों का रोज दो बार सेवन कर सकता है।
* मुंह का संक्रमण : अल्सर और मुंह के अन्य संक्रमण में तुलसी की पत्तियां फायदेमंद साबित होती हैं। रोजाना तुलसी की कुछ पत्तियों को चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है।
* त्वचा रोग : दाद, खुजली और त्वचा की अन्य समस्याओं में तुलसी के अर्क को प्रभावित जगह पर लगाने से कुछ ही दिनों में रोग दूर हो जाता है। नैचुरोपैथों द्वारा ल्यूकोडर्मा का इलाज करने में तुलसी के पत्तों को सफलता पूर्वक इस्तेमाल किया गया है।
तुलसी की ताजा पत्तियों को संक्रमित त्वचा पर रगडे। इससे इंफेक्शन ज्यादा नहीं फैल पाता।
* सांसों की दुर्गध : तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल में मिलाकर दांत साफ करने से सांसों की दुर्गध चली जाती है। पायरिया जैसी समस्या में भी यह खासा कारगर साबित होती है।
* सिर का दर्द : सिर के दर्द में तुलसी एक बढि़या दवा के तौर पर काम करती है। तुलसी का काढ़ा पीने से सिर के दर्द में आराम मिलता है।
* आंखों की समस्या : आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए।
* कान में दर्द : तुलसी के पत्तों को सरसों के तेल में भून लें और लहसुन का रस मिलाकर कान में डाल लें। दर्द में आराम मिलेगा।
* ब्लड-प्रेशर को सामान्य रखने के लिए तुलसी के पत्तों का सेवन करना चाहिए।
* तुलसी के पांच पत्ते और दो काली मिर्च मिलाकर खाने से वात रोग दूर हो जाता है।
* कैंसर रोग में तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से काफी लाभ मिलता है।
* तुलसी तथा पान के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर देने से बच्चों के पेट फूलने का रोग समाप्त हो जाता है।
* तुलसी का तेल विटामिन सी, कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होता है।
* तुलसी का तेल मक्खी- मच्छरों को भी दूर रखता है।
* बदलते मौसम में चाय बनाते हुए हमेशा तुलसी की कुछ पत्तियां डाल दें। वायरल से बचाव रहेगा।
* शहद में तुलसी की पत्तियों के रस को मिलाकर चाटने से चक्कर आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीज का चूर्ण दही के साथ लेने से खूनी बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
* तुलसी के बीजों का चूर्ण दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में वृध्दि होती है।

रोज सुबह तुलसी की पत्तियों के रस को एक चम्मच शहद के साथ मिलाकर पीने से स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। तुलसी की केवल पत्तियां ही लाभकारी नहीं होती। तुलसी के पौधे पर लगने वाले फल जिन्हें अमतौर पर मंजर कहते हैं, पत्तियों की तुलना में कहीं अघिक फायदेमंद होता है। विभिन्न रोगों में दवा और काढे के रूप में तुलसी की पत्तियों की जगह मंजर का उपयोग भी किया जा सकता है। इससे कफ द्वारा पैदा होने वाले रोगों से बचाने वाला और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला माना गया है। किंतु जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे का विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के अंश होते हैं। जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे दंत और मुख रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।
तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणु नष्ट करता है। नई खोज से पता चला है इसमें कीनोल, एस्कार्बिक एसिड, केरोटिन और एल्केलाइड होते हैं। तुलसी पत्र मिला हुआ पानी पीने से कई रोग दूर हो जाते हैं। इसीलिए चरणामृत में तुलसी का पत्ता डाला जाता है। तुलसी के स्पर्श से भी रोग दूर होते हैं। तुलसी पर किए गए प्रयोगों से सिद्ध हुआ है कि रक्तचाप और पाचनतंत्र के नियमन में तथा मानसिक रोगों में यह लाभकारी है। इससे रक्तकणों की वृद्धि होती है। तुलसी ब्र्म्ह्चर्य की रक्षा करने एवं यह त्रिदोषनाशक है।

जय हिन्द, जय भारत !!


Sunday 14 April 2013

पेट की बीमारी का इलाज by राजीव जी दीक्षित









राजीव भाई कहते है अगर आपकी पेट ख़राब है दस्त हो गया है , बार बार आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो इसकी सबसे अच्छी दवा है जीरा | अध चम्मच जीरा चबाके खा लो और गुनगुना पानी पी लो तो दस्त एकदम बंद हो जाते है एक ही खुराक में |

अगर बहुत ज्यादा दस्त हो ... हर दो मिनिट में आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो आधा कप कच्चा दूध ले लो बिना गरम किया हुआ और उसमे निम्बू डालके जल्दी से पी लो | दूध फटने से पहले पीना है और बस एक ही खुराक लेना है बस इतने में ही खतरनाक दस्त ठीक हो जाते है |

और एक अच्छी दवा है ये जो बेल पत्र के पेड़ पर जो फल होते है उसका गुदा चबाके खा लो पीछे से थोडा पानी पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है | बेल का पाउडर मिलता है बाज़ार में उसका एक चम्मच गुनगुना पानी के साथ पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है |

पेट अगर आपका साफ़ नही रहता कब्जियत रहती है तो इसकी सबसे अच्छी दवा है अजवाईन | इसको गुड में मिलाके चबाके खाओ और पीछे से गरम पानी पी लो तो पेट तुरंत साफ़ होता है , रात को खा के सो जाओ सुबह उठते ही पेट साफ होगा |

और एक अच्छी दवा है पेट साफ करने की वो है त्रिफला चूर्ण , रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण ले लो पानी के साथ पेट साफ हो जायेगा |

पेट जुडी दो तिन ख़राब बिमारिय है जैसे बवासीर, पाईल्स, हेमोरोइड्स, फिसचुला, फिसर .. ये सब बिमारिओ में अच्छी दवा है मुली का रस | एक कप मुली का रस पियो खाना खाने के बाद दोपहर को या सबेरे पर शाम को मत पीना तो हर तरेह का बवासीर ठीक हो जाता है , भगंदर ठीक होता है फिसचुला, फिसर ठीक होता है .. अनार का रस पियो तो भी ठीक हो जाता है |

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
http://www.youtube.com/watch?v=PHuYbNe2lBw

वन्देमातरम्
भारत माता की जय


Friday 12 April 2013

लटजीरा




आपके बाग-बगीचे, आँगन या खेलकूद के मैदानों और आम रूप से खेतों में दिखाई देने वाले लटजीरा/ लटकन का वानस्पतिक नाम एकाइरेन्थस एस्पेरा है। एक से तीन फीट की ऊँचाई वाले इस पौधे पर ऊपरी भाग पर एक लट पर जीरे की तरह दिखाई देने वाले बीज लगे होते हैं जो अक्सर पैंट और साडिय़ों आदि से रगड़ खाने पर चिपक जाते हैं। खेती में अक्सर इसे खरपतवार माना जाता है लेकिन आदिवासी इसे बड़ा ही महत्वपूर्ण औषधीय पौधा मानते हैं।

. लटजीरा के बीजों को एकत्र कर कुछ मात्रा लेकर पानी में उबाला जाए और काढ़ा बन जाने पर भोजन के 2-3 घंटे बाद देने से लीवर (यकृत) की समस्या में आराम मिलता है

. ऐसा माना जाता है कि लटजीरा के बीजों को मिट्टी के बर्तन में भूनकर सेवन करने से भूख मरती है और इसे वजन घटाने के लिए इस तरह उपयोग में भी लाया जाता है।

. लटजीरा के तने को कुचलकर कत्थे के साथ मिलाया जाए और 2-4 पत्तियाँ सीताफल की कुचलकर डाल दी जाए। ये सारा मिश्रण पके हुए घाव पर लगाया जाए तो घाव में आराम मिल जाता है। आधुनिक विज्ञान की मानी जाए तो टैनिन नामक रसायन घाव सुखाने के लिए महत्वपूर्ण रसायन है और लटजीरा, सीताफल और कत्थे तीनों में भरपूर मात्रा में टैनिन पाया जाता है।

. नए जख्म या चोट लग जाने पर रक्त स्राव होता है, लटजीरा के पत्तों को पीसकर इसके रस को जख्म में भर देने से बहता रक्त रूक जाता है।

. लटजीरा के संपूर्ण पौधे के रस का सेवन अनिद्रा रोग में फायदा करता है। जिन्हे तनाव, थकान और चिढ़चिढ़ापन की वजह से नींद नहीं आती है उन्हे इसका सेवन करने से निश्चित फायदा मिलता है।

. लटजीरा पत्तों के साथ हींग चबाने से दांत दर्द में तुरंत आराम मिलता है। माना जाता है कि दाँतों से निकलने वाले खून को भी रोकने में यह काफी कारगर होता है। मसूड़ो से खून आना, बदबू आना अथवा सूजन होने से लटजीरा की दातुन उपयोग में लाने पर तुरंत आराम पड़ता है।

. सर्दी और खांसी में लटजीरा के पत्तों का रस लेना अत्यंत गुणकारी है। आदिवासियों के अनुसार दिन में दो से तीन बार इस रस का सेवन पुराना कफ भी ठीक कर देता है।


. आदिवासियों की मान्यतानुसार संतान प्राप्ति के लिए लटजीरा की जड़ को दूध में घिसकर महिला को मासिक धर्म के दौरान सेवन कराया जाए तो संतान प्राप्ति होती है।


Wednesday 10 April 2013

तुलसी के बीज का महत्त्व




तुलसी के बीज का महत्त्व :

जब भी तुलसी में खूब फुल यानी मंजिरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के झाड में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है . इन पकी हुई मंजिरियों को रख ले . इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले . यही सब्जा है . अगर आपके घर में नही है तो बाजार में पंसारी या आयुर्वैदिक दवाईयो की दुकान पर मिल जाएंगे

शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी:: तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है

नपुंसकता:: तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढोतरि होती है।

मासिक धर्म में अनियमियता:: जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है


तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जेली की तरह फुल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां दाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है .यह पित्त घटाता है ये त्रीदोषनाशक , क्षुधावर्धक है .

Friday 5 April 2013

अमृत है बेलफ़ल ( बिल्ला )




अमृत है बेलफ़ल ( बिल्ला )

गर्मी के मौसम में गर्मी से राहत देने वाले फलों में बेल का फल प्रकृति मां द्वारा दी गई किसी सौगात से कम नहीं है | कहा गया है- 'रोगान बिलत्ति-भिनत्ति इति बिल्व ।' अर्थात् रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है ।बेल सुनहरे पीले रंग का, कठोर छिलके वाला एक लाभदायक फल है। गर्मियों में इसका सेवन विशेष रूप से लाभ पहुंचाता है। शाण्डिल्य, श्रीफल, सदाफल आदि इसी के नाम हैं। इसके गीले गूदे को बिल्व कर्कटी तथा सूखे गूदे को बेलगिरी कहते हैं।स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग जहाँ इस फल के शरबत का सेवन कर गर्मी से राहत पा अपने आप को स्वस्थ्य बनाए रखते है वहीँ भक्तगण इस फल को अपने आराध्य भगवान शिव को अर्पित कर संतुष्ट होते है |

औषधीय प्रयोगों के लिए बेल का गूदा, बेलगिरी पत्ते, जड़ एवं छाल का चूर्ण आदि प्रयोग किया जाता है। चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल का प्रयोग किया जाता है वहीं अधपके फल का प्रयोग मुरब्बा तो पके फल का प्रयोग शरबत बनाकर किया जाता है।

बेल व बिल्व पत्र के नाम से जाने जाना वाला यह स्वास्थ्यवर्धक फल उत्तम वायुनाशक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक है। ये कृमि व दुर्गन्ध का नाश करते हैं। इनमें निहित उड़नशील तैल व इगेलिन, इगेलेनिन नामक क्षार-तत्त्व आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं। चतुर्मास में उत्पन्न होने वाले रोगों का प्रतिकार करने की क्षमता बिल्वपत्र में है।

बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, कृमिनाशक, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्र के प्रमाण व मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं। शरीर के सूक्ष्म मल का शोषण कर उसे मूत्र के द्वारा बाहर निकाल देते हैं। इससे शरीर की आभ्यंतर शुद्धि हो जाती है। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।

*ये पेय गर्मियों में जहां आपको राहत देते हैं, वहीं इनका सेवन शरीर के लिए लाभप्रद भी है। बेल में शरीर को ताकतवर रखने के गुणकारी तत्व विद्यमान हैं। इसके सेवन से कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि यह रोगों को दूर भगा कर नई स्फूर्ति प्रदान करता है।
*गर्मियों में लू लगने पर इस फल का शर्बत पीने से शीघ्र आराम मिलता है तथा तपते शरीर की गर्मी भी दूर होती है।

*पुराने से पुराने आँव रोग से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन अधकच्चे बेलफल का सेवन करें।

*पके बेल में चिपचिपापन होता है इसलिए यह डायरिया रोग में काफी लाभप्रद है। यह फल पाचक होने के साथ-साथ बलवर्द्धक भी है।

*पके फल के सेवन से वात-कफ का शमन होता है।

*आँख में दर्द होने पर बेल के पत्त्तों की लुगदी आँख पर बाँधने से काफी आराम मिलता है।

*कई मर्तबा गर्मियों में आँखें लाल-लाल हो जाती हैं तथा जलने लगती हैं। ऐसी स्थिति में बेल के पत्तों का रस एक-एक बूँद आँख में डालना चाहिए। लाली व जलन शीघ्र दूर हो जाएगी।

*बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इस फल के पत्तों का अर्क निकालकर पिलाना चाहिए।

*बेल की छाल का काढ़ा पीने से अतिसार रोग में राहत मिलती है।

*इसके पके फल को शहद व मिश्री के साथ चाटने से शरीर के खून का रंग साफ होता है, खून में भी वृद्धि होती है।

*बेल के गूदे को खांड के साथ खाने से संग्रहणी रोग में राहत मिलती है।

*पके बेल का शर्बत पीने से पेट साफ रहता है।

*बेल का मुरब्बा शरीर की शक्ति बढ़ाता है तथा सभी उदर विकारों से छुटकारा भी दिलाता है।

*गर्मियों में गर्भवती स्त्रियों का जी मिचलाने लगे तो बेल और सौंठ का काढ़ा दो चम्मच पिलाना चाहिए।

*पके बेल के गूदे में काली मिर्च, सेंधा नमक मिलाकर खाने से आवाज भी सुरीली होती है।

*छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक चम्मच पका बेल खिलाने से शरीर की हड्डियाँ मजबूत होती हैं।