Wednesday 26 February 2014

वात-पित्त-कफ







वात-पित्त-कफ के लक्षण और रोग :-
वात :-- वात के बिगड़ने से मुख्यतः ८० विमारियां होती है जैसे हड्डियों और मांसपेशियों में जकड़न, याद दास्त की कमी ,फटी एड़िया, सूखी त्वचा, किसी भी तरह का दर्द, लकवा, भ्रम, विषाद, कान व आँख के रोग , मुख सूखना, कब्ज , आदि ।

लक्षण :-
मुंह में कड़वाहट , फटी त्वचा , नाखुनो का खुरदरा होना , ठण्ड बर्दास्त ना होना , कार्य जल्दी करने की प्रविर्ती , रंग काला , अनियमित पाचन , नीद कम आना , खट्टा व मीठे चीज के खाने की इच्छा करना , मैले नेत्र रूखे बाल ।

* नाड़ी की गति तेज व अनियमित , टेढ़ी-मेढ़ी (सर्पाकार ) होती है ।

इलाज :- तेल की मालिश व चुना
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पित्त :-- पित्त से लगभग ४० विमारियां होती है जैसे - शरीर में जलन , खट्टी डकार , दुर्गन्धयुक्तअधिक पसीना , लाल चकत्ते निकलना , पीलिया , मुँह का तीखापन , गल्पाक , गुदा में जलन , आँखों में जलन , मुंख की दुर्गन्ध, मुंह के छाले आदि ।

लक्षण :- गुस्सा आना , भूख-प्यास ज्यादा लगना, गर्मी सहन ना होना , बार-बार पेशाब जाना ,पीली त्वचा, बाल जल्द सफ़ेद होना , मूत्र में जलन , धूप-आग बुरी लगती है ।

इलाज :- देशी गाय का घी , त्रिफला ।

* नाड़ी की गति कूदती ( मेढक या कौवे चाल वाली ) ,उत्तेजित व भारी होती है ।
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कफ :-- कफ से लगभग २० रोग होते है जैसे - आलस्य , गल्कंड , विना खाए पेट भारी होना , बलासक, शरीर पर चकत्ते, ह्रदयोप्लेप ,मुंह का फीकापन आदि ।

लक्षण :-मोटापा , आलस्य, सब काम आराम से करते है , गुस्सा ना आना , किसी चीज को देर से समझना , मुंह से बलगम आना , भूख- प्यास कम लगना , चिकने नाख़ून व त्वचा , मधुरभाषी ।

* नाड़ी :-- मंद-मंद ( कबूतर या मोर चाल युक्त ), कमजोर व कोमल नाड़ी ।

इलाज :- गुड और शहद ।
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सभी रोगों की शुरुआत मन्दाग्नि कम होने पर होती है ।
किसी औषधि से अच्छा उपवास है
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ॐ शांति ॥ जय आयुर्वेद ॥

Tuesday 10 December 2013

देशी फल--जन्गल जलेबी





देशी फल ---ढूंढे नहीं मिल रहे देशी फल




विदेशी फलों की भरमार से तमाम देशी और मौसमी फल बाजार से गायब होते जा रहे हैं। बाजारों में न्यूजीलैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इटली आदि देशों के फल धड़ल्ले से बिक रहे हैं, लेकिन वनों में सहज पैदा होने वाले मौसमी फल तेन्दू, अचार, खिरनी या खिन्नी, शहतूत, कसेरू, कबीट, लाल इमली छोटे शहरों के बाजारों में भी ढूंढे नहीं मिलते हैं। जिन लोगों को इन फलों के बारे में पता है और जिन्होंने इन फलों को खाने का मजा लिया है, आज वे केवल इनके नाम को ही याद रखे हुए हैं।

लोगों की स्मृतियों से जुड़े पारम्परिक फलों के लुप्त होने की वजह अलग-अलग हैं। पहली तो यह कि शहर के चौतरफा विस्तार से पारम्परिक फलों के वृक्ष खत्म हो गए। दूसरी यह है कि बच्चों और बड़ों में नए प्रकार के फलों का आकर्षण बढ़ गया। जंगली क्षेत्र में पारम्परिक फलों का वनोपज मानते हुए वन विभाग के अमले ने इसे तोड़ने पर बंदिश लगा दी। हरी इमली और चिट्टेदार इमली भी सड़कों पर बिकती नजर नहीं आती। इसी तरह जंगल जलेबी के नाम से मशहूर है, अब गायब हो गई है। तीनों प्रकार की इमली का जायका नए जमाने के कई लोगों ने लिया भी नहीं होगा, हालांकि कबीट बाजारों में नजर आ रहा है। इसकी बिक्री में कोई कमी नहीं आई है। ताल में होने वाले सिंघाड़े भी गायब हो गए हैं। बड़े होटलों में कबीट की चटनी का चलन बढ़ने से विक्रेताओं को ग्राहकों की फ्रिक नहीं है।

शहतूत की मिठास और खट्टे मीठे कमरख का जायका बीते जमाने की बात हो गई है। अचार, कसेरू, जंगल जलेबी के नाम से मशहूर इमली का भी यही हाल है। बाजार में ढूंढने पर भी यह फल दिखाई नहीं देते। इनकी जगह विदेशों से आयात हो रहे फलों ने ले ली है। अब लोग बाबू कोशा, कीवी और अमेरिका तथा न्यूजीलैंड से आ रहे सेवों का स्वाद चखना चाहते हैं। स्कूल के सामने सार्वजनिक स्थानों पर किसी जमाने में हाथ ठेलों पर तेंदू, अचार, खिन्नी, करोंदे, शहतूत, कसेरू, कबीट, इमली आदि बिका करते थे। इन ठेलों पर हर उम्र के लोग फलों का लुप्त लेते नजर आते थे। इसी तरह कबीट जैसे दिखने वाला भील फल भी गायब हो गया है।

आयुर्वेद में कबीट को पेट रोगों का विशेषज्ञ माना गया है। इसका जहाँ शरबत इस्तेमाल किया जाता है, वहीं चटनी भी खूब पसंद की जाती है।

आयुर्वेदिक चिकित्सक कबीट के गूदे को तरोताजगी प्रदान करने वाला मानते हैं। कच्चे कबीट में एस्ट्रीजेंट्स होते हैं जो मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। यह डायरिया और डीसेंट्री के मरीजों के इलाज में मुफीद माना जाता है। मसूड़ों तथा गले के रोग भी इससे ठीक होते हैं। बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।



कबीट के गूदे से बहुत ही उम्दा किस्म की जैली बनाई जाती है जो दिखने के साथ ही गुणवत्ता में ब्लैक करंट या एप्पल जैली की तरह होती है। छोटे कबीट की खट्टी तासीर को चटनी बनाकर उपयोगी बना लिया जाता है। इसमें गुड़ या शकर के साथ जीरा मिर्च और काला नमक भी पीस लिया जाता है। यह अम्ल पित्त में औषधि का काम करती है।

Friday 6 December 2013

छोटे से नीबू में बडे औषधीय गुण




छोटे से नीबू में बडे औषधीय गुण

कोई भी मौसम हो, नींबू ऎसा फल है जो हर घर में हर समय मिलता है। यह केवल खाने का स्वाद ही नहीं बढाता बल्कि इसमें कई औषधीय व सौंदर्यवर्धक गुण भी मौजूद हैं। इसमें विटामिन-सी पर्याप्त मात्रा में होता है।
सौंदर्य निखार के लिए :
1. नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर रात में सिर में हल्के हाथ से, एक हफ्ते तक रोजाना मालिश कर, सुबह सिर धोने से बालों की खुश्की दूर हो जाती है।
2. यदि मालिश न भी करें तो सिर धोने के पानी में दो नींबू निचोडकर एक हफ्ता लगातार प्रयोग करने से बाल मुलायम होते हैं, उनका झडना कम होता है और खुश्की या रूसी भी कम होती है।
3. नारियल के तेल में नींबू का रस और कपूर लगाकर सिर की मालिश करने से बालों के रोग खत्म हो जाते हैं।
4. सुबह स्नान करने से पहले नींबू के छिलकों को चेहरे पर धीरे-धीरे मलकर 2-3 मिनट बाद चेहरे को पानी से धो लें। इसे 10-15 दिन लगातार करने से चेहरे का रंग साफ हो जाता है। यह बाजार में मिलने वाले किसी भी ब्लीचिंग क्रीम या ब्यूटी पार्लर में कराए जाने वाले ब्लीच का काम करेगा।
5. नींबू का रस और गुलाबजल समान मात्रा में मिलाकर चेहरे पर लगाएं, कुछ दिनों के लगातार प्रयोग से चेहरा बेदाग,त्वचा कोमल व स्वच्छ हो जाती है।
6. नींबू और तुलसी की पत्तियों का रस समान मात्रा में मिलाकर किसी कांच के बर्तन में रख लें और दिन में कम से कम दो बार हल्के हाथ से चेहरे पर लगाएं। कुछ दिन के लगातार इस्तेमाल से चेहरे पर झाइयां व किसी भी प्रकार के निशान मिट जाते हैं।
7. चेहरा जल जाने पर यदि चेहरे पर काले दाग पड गए हों तो एक टमाटर के गूदे में नींबू के रस की कुछ बूंदें मिलाकर सुबह-शाम लगाएं और थोडी देर बाद धो लें।
औषधि के रूप में
1. बदहजमी होने पर नींबू काटकर उसकी फांक या छोटे टुकडे में काला नमक लगाकर चूसने से आराम आता है।
2. जिनको भूख कम लगती है और पेट दर्द की शिकायत रहती है उनको नींबू की फांक में काला या सेंधा नमक लगाकर उसको तवे पर गर्म करके चूसने से न केवल दर्द में आराम मिलता है बल्कि भूख भी खुलकर लगती है।
3. यदि चक्कर आ रहे हों या उल्टी आ रही हों तो नींबू के टुकडे पर काला नमक, काली मिर्च लगाकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं और उल्टी भी बंद हो जाती है।
4. एक गिलास पानी में एक नींबू का रस निचोडकर एक चम्मच चीनी पीसकर मिलाकर पीने से हैजे जैसा रोग भी ठीक हो जाता है

Monday 18 November 2013

गौमूत्र





प्रश्न 1: गौमूत्र किस गाय का लेना चाहिए?
उत्तर - जो वन में विचरण करके, व्यायाम करके इच्छानुसार घास का सेवन करे, स्वच्छ पानी पीवे, स्वस्थ हो; उस गौ का गौमूत्र औषधि गुणवाला होता है।
शास्त्रीय निर्देश है कि - ‘‘अग्रमग्रं चरन्तीनामोषधीनां वने वने’’।

प्रश्न 2: गौमूत्र किस आयु की गौ का लेना चाहिए?
उत्तर - किसी भी आयु की- बच्ची, जवान, बूढ़ी-गौ का गौमूूत्र औषधि प्रयोग में काम में लाना चाहिए।

प्रश्न 3: क्या बैल, छोटा बच्चा या वृद्ध बैल का भी गौमूत्र औषधि उपयोग में
आता है?
उत्तर: नर जाति का मूत्र अधिक तीक्ष्ण होता है, पर औषधि उपयोगिता में कम नहीं है, क्योंकि प्रजाति तो एक ही है। बैलों का मूत्र सूँघने से ही
बंध्या (बाँझ) को सन्तान प्राप्त होती है। कहा है:

‘‘ऋषभांष्चापि, जानामि
राजनपूजितलक्षणान्। येषां मूत्रामुपाघ्राय, अपि बन्ध्या प्रसूयते।।’’
(संदर्भ-महाभारत विराटपर्व) अर्थ: उत्तम लक्षण वाले उन बैलों की भी मुझे पहचान है, जिनके मूत्र को सूँघ लेने मात्र से बंध्या स्त्री गर्भ धारण करने योग्य हो जाती है।

प्रश्न 4: गौमूत्र को किस पात्र में रखना चाहिए?
उत्तर: गौमूत्र को ताँबे या पीतल के पात्रा में न रखंे। मिट्टी, काँच, चीनी
मिट्टी का पात्र हो एवं स्टील का पात्र भी उपयोगी है।

प्रश्न 5: कब तक संग्रह किया जा सकता है ?
उत्तर: गौमूत्र आजीवन चिर गुणकारी होता है। धूल न गिरे, ठीक तरह से ढँका हुआ हो, गुणों में कभी खराब नहीं होता है। रंग कुछ लाल, काला ताँबा व लोहा के कारण हो जाता है। गौमूत्र में गंगा ने वास किया है। गंगाजल भी कभी खराब नहीं होता है। पवित्रा ही रहता है। किसी प्रकार के हानिकारक कीटाणु नहीं होते हैं।

प्रश्न 6: जर्सी गाय के वंश का गौमूत्र लिया जाना चाहिए या नहीं?
उत्तर: नहीं लेना चाहिए।





Sunday 17 November 2013

गजब का रूम फ्रेशनर




खट्टे मौसमी फलों के छिलकों को कचरे के साथ यूं ना फेंके..संतरा, नींबू, मौसंबी आदि के छिलकों को एक बर्तन में पानी के साथ खौलाएं, खौलाने से पहले थोडी सी दालचीनी और ३-४ लौंग जरूर डाल दें...जब यह खौलने लगे तो सावधानी से हर कमरे में खौलते बर्तन को ले जांए..इसकी सुगंध मात्र से करीब १२ प्रकार के सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं..और यह गजब का रूम फ्रेशनर भी होता है..है ना कमाल का आईडिया..

Wednesday 23 October 2013

वृक्कों (गुर्दों) में पथरी-Renal (Kidney) Stone



वृक्कों (गुर्दों) में पथरी-Renal (Kidney) Stone

वृक्कों गुर्दों में पथरी होने का प्रारंभ में रोगी को कुछ पता नहीं चलता है, लेकिन जब वृक्कों से निकलकर पथरी मूत्रनली में पहुंच जाती है तो तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। पथरी के कारण तीव्र शूल से रोगी तड़प उठता है।

उत्पत्ति :
भोजन में कैल्शियम, फोस्फोरस और ऑक्जालिकल अम्ल की मात्रा अधिक होती है तो पथरी का निर्माण होने लगता है। उक्त तत्त्वों के सूक्ष्म कण मूत्र के साथ निकल नहीं पाते और वृक्कों में एकत्र होकर पथरी की उत्पत्ति करते हैं। सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी पथरी वृक्कों में तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। कैल्शियम, फोस्फेट, कोर्बोलिक युक्त खाद्य पदार्थों के अधिक सेवन से पथरी का अधिक निर्माण होता है।

लक्षण :
पथरी के कारण मूत्र का अवरोध होने से शूल की उत्पत्ति होती है। मूत्र रुक-रुक कर आता है और पथरी के अधिक विकसित होने पर मूत्र पूरी तरह रुक जाता है। पथरी होने पर मूत्र के साथ रक्त भी निकल आता है। रोगी को हर समय ऐसा अनुभव होता है कि अभी मूत्र आ रहा है। मूत्र त्याग की इच्छा बनी रहती है। पथरी के कारण रोगी के हाथ-पांवों में शोध के लक्षण दिखाई देते हैं। मूत्र करते समय पीड़ा होती है। कभी-कभी पीड़ा बहुत बढ़ जाती है तो रोगी पीड़ा से तड़प उठता है। रोगी कमर के दर्द से भी परेशान रहता है।

क्या खाएं?
* वृक्कों में पथरी पर नारियल का अधिक सेवन करें।
* करेले के 10 ग्राम रस में मिसरी मिलाकर पिएं।
* पालक का 100 ग्राम रस गाजर के रस के साथ पी सकते हैं।
* लाजवंती की जड़ को जल में उबालकर कवाथ बनाकर पीने से पथरी का निष्कासन हो जाता है।
* इलायची, खरबूजे के बीजों की गिरी और मिसरी सबको कूट-पीसकर जल में मिलाकर पीने से पथरी नष्ट होती है।
* आंवले का 5 ग्राम चूर्ण मूली के टुकड़ों पर डालकर खाने से वृक्कों की पथरी नष्ट होती है।
* शलजम की सब्जी का कुछ दिनों तक निरंतर सेवन करें।
* गाजर का रस पीने से पथरी खत्म होती है।
* बथुआ, चौलाई, पालक, करमकल्ला या सहिजन की सब्जी खाने से बहुत लाभ होता है।
* वृक्कों की पथरी होने पर प्रतिदिन खीरा, प्याज व चुकंदर का नीबू के रस से बना सलाद खाएं।
* गन्ने का रस पीने से पथरी नष्ट होती है।
* मूली के 25 ग्राम बीजों को जल में उबालकर, क्वाथ बनाएं। इस क्वाथ को छानकर पिएं।
* चुकंदर का सूप बनाकर पीने से पथरी रोग में लाभ होता है।
* मूली का रस सेवन करने से पथरी नष्ट होती है।
* जामुन, सेब और खरबूजे खाने से पथरी के रोगी को बहुत लाभ होता है।
नोट: पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन करने से पहले चिकित्सक से अवश्य परामर्श कर लें।

क्या न खाएं?
* वृक्कों में पथरी होने पर चावलों का सेवन न करें।
* उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रस से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
* गरिष्ठ व वातकारक खाद्य व सब्जियों का सेवन न करें।
* चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें।
* चइनीज व फास्ट फूड वृक्कों की विकृति में बहुत हानि पहंुचाते हैं।
* मूत्र के वेग को अधिक समय तक न रोकें।
* अधिक शारीरिक श्रम और भारी वजन उठाने के काम न करें।

Monday 9 September 2013

अमृत धारा





आज से लगभग 30-40 वर्ष पूर्व "अमृत धारा" बड़ी प्रचलन में थी। वर्तमान पीढ़ी एसे भूल गई है। यह एक कई रोगों की दवा है।
बनाने की विधि यह है-
कपूर, अजवायन सत्व और पिपरमेंट ये सभी जड़ीबूटी बेचने वाले अत्तार /विक्रेता के यहाँ आसानी से मिल जाएगी को बराबर मात्रा में लीजिए, इनको एक शीशी में डालकर मिला लीजिए और उस शीशी को धूप में ढक्कन लगा कर रख दीजिए। बीच-बीच में इस घोल को हिलाते रहिए। थोड़ी देर में ही पानी की तरह तरल हो जाएगी अच्छी तरह ढक्कन लगा कर रखे अन्यथा उड जाएगी। यह घर के वेध्य की तरह ही सहायक है। निम्न तकलीफ़ों में चमत्कारी असर मिलेगा। आजमाए बेहद सस्ता ओर प्रभावी चुटुकुला।

-उल्टी जी मचलने पर बताशे या ग्लूकोज में एक बूंद डालकर खिलाये।

-इसकी चार से आठ बूंदें बताशे में या चीनी के शर्बत में मिलाकर दस्त के रोगी को दीजिए। इससे दस्तइ में आराम मिलेगा।

-सर में दर्द हिने पर सिर पर मलें।

-दांत में दर्द होने पर रुई में भिगोकर दांत में दवा लें।

पीली भोंरी, बिच्छू,आदि कीड़ो के काटने पर उसी जगह मलें। काटे हुए स्थान पर अमृतधारा को रुई में भिगोकर लगायें, तो तत्काल लाभ होता है ।

ओर भी कई उपयोग दादी नानी भी जानती होंगी पूछें ।